भारत के टॉप वैज्ञानिक
डॉक्टर के. राधाकृष्णन
चंद्रयान और मार्क्स मिशन के प्रणेता
दोस्तों डॉक्टर की राधा कृष्ण का जन्म 24 अगस्त 1949 को हुआ था राधा कृष्ण जी ने मंगलयान और चंद्रयान के निर्माता का श्री दिया जाता है उनकी टीम दुनियाभर में सबसे कम कीमत पर तैयार होने वाला यान है मंगलयान की सफलता ने दुनिया भर में वाहवाही बटोरी और पहले ही प्रयास में इस मुकाम को हासिल करने वाला भारत पहला देश बना
डॉक्टर के. राधाकृष्णन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष रह चुके हैं।
के. राधाकृष्णन
डॉ॰ के राधाकृष्णन
जन्म24अगस्त 1949 (आयु 67)
केरल, भारतआवास भारतराष्ट्रीयता भारतीयक्षेत्रअंतरिक्ष अनुसंधानसंस्थानवीएसएससी, इसरोशिक्षाआईआईटी, खड़गपुर (पीएचडी, 2000)
आईआईएम, बैंगलोर (पीजीडीएम, 1976)
इंजीनियरिंग कालेज, त्रिवेंद्रम (बीएससी इंजी., 1970)
प्रसिद्धिचंद्रयान मिशन, मंगलयान
उनके सेवानिवृत्ति के बाद उनके पद का उत्तराधिकारी डॉक्टर जी माधवन को दिया गया
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष
डॉ॰ राधाकृष्णन ने केरल विश्वविद्यालय से 1970 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पास किया। और इसरो में अपना कार्यकाल विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर, तिरुवनंतपुरम में एवियॉनिक्स इंजीनियर के रूप में 1971 से शुरू किया। उन्होंने विक्रम साराभाई के टाइम भी काम किया स्पेस सेंटर में इंस्पेक्टर के रूप में
डॉ॰ राधाकृष्णन ने पहली साल में एक जीएसएलवी के लिए स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन को तैयार किया और वह सफल भी रहे
उनके मार्गदर्शन में भारत ने सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में अपना उपग्रह स्थापित करने में सफलता पाई।
चंद्रयान और मार्क्स मिशन के प्रणेता
दोस्तों डॉक्टर की राधा कृष्ण का जन्म 24 अगस्त 1949 को हुआ था राधा कृष्ण जी ने मंगलयान और चंद्रयान के निर्माता का श्री दिया जाता है उनकी टीम दुनियाभर में सबसे कम कीमत पर तैयार होने वाला यान है मंगलयान की सफलता ने दुनिया भर में वाहवाही बटोरी और पहले ही प्रयास में इस मुकाम को हासिल करने वाला भारत पहला देश बना
डॉक्टर के. राधाकृष्णन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष रह चुके हैं।
के. राधाकृष्णन
डॉ॰ के राधाकृष्णन
जन्म24अगस्त 1949 (आयु 67)
केरल, भारतआवास भारतराष्ट्रीयता भारतीयक्षेत्रअंतरिक्ष अनुसंधानसंस्थानवीएसएससी, इसरोशिक्षाआईआईटी, खड़गपुर (पीएचडी, 2000)
आईआईएम, बैंगलोर (पीजीडीएम, 1976)
इंजीनियरिंग कालेज, त्रिवेंद्रम (बीएससी इंजी., 1970)
प्रसिद्धिचंद्रयान मिशन, मंगलयान
उनके सेवानिवृत्ति के बाद उनके पद का उत्तराधिकारी डॉक्टर जी माधवन को दिया गया
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष
डॉ॰ राधाकृष्णन ने केरल विश्वविद्यालय से 1970 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पास किया। और इसरो में अपना कार्यकाल विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर, तिरुवनंतपुरम में एवियॉनिक्स इंजीनियर के रूप में 1971 से शुरू किया। उन्होंने विक्रम साराभाई के टाइम भी काम किया स्पेस सेंटर में इंस्पेक्टर के रूप में
डॉ॰ राधाकृष्णन ने पहली साल में एक जीएसएलवी के लिए स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन को तैयार किया और वह सफल भी रहे
उनके मार्गदर्शन में भारत ने सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में अपना उपग्रह स्थापित करने में सफलता पाई।
डॉ विजय पाण्डुरंग भाटकर
सुपर कंप्यूटर के वास्तुकार
(जन्म : 11अक्टूबर, 1946 ) भारत के वैज्ञानिक एवं आईटी प्रध्यापक हैं। भारतीय सुपर कम्प्यूटर परम-800 के विकास में उनका योगदन अद्वितीय है। उनकी सबसे बड़ी पहचान देश के पहले सुपरकंप्यूटर परम के निर्माता और देश में सुपरकंप्यूटिंग की शुरुआत से जुड़े सी-डेक के संस्थापक कार्यकारी निदेशक के तौर पर है। ये े नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति रहे । वे भारत में आईटी लीडर के नाम से प्रसिद्ध है। डॉक्टर विजय पी भाटकर को अनेकों पुरस्कार से सम्मानित किया गया
उनको पद्म श्री पद्म भूषण, महाराष्ट्र भूषण अवार्ड, संत ज्ञानेश्वर विश्व शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।[1]
विजय पाण्डुरंग भटकर्
विजय पी भटकरजन्मविजय
11 अक्टूबर 1946 (आयु 70)आवासपुणे, महाराष्ट्रराष्ट्रीयताभारतीयशिक्षा प्राप्त कीभारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली
महाराज सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय, बड़ौदा
डाटा क्वेस्ट मैगजीन ने उन्हें भारतीय IIT इंडस्ट्रीज का स्टार पायनीयर करा दिया
डॉक्टर शिवथनु पिल्लई
क्रूज मिसाइल ब्रम्होस के निर्माण में मदद
जन्म 15 जुलाई 1947 को हुआ था
पट्टीकल्याणा स्थित पानीपत इंस्टीट्यूट आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी में आयोजित क्वैस्ट प्रतियोगिता में नई दिल्ली से आए ब्रह्मोस एयरोस्पेस के सीईओ एवं एमडी डॉ ए शिवथनु पिल्लई ने शिरकत की। शिव शंकर लाल जी जब भी कोई यूनिवर्सिटी में जाते थे तो वहां पर बच्चों को कहा करते थे कि सब बच्चों में प्रतिभा छुपी है बस उसे पहचानने की जरुरत है जो पहचान जाता है वह आगे बढ़ जाता है और वह हमेशा पॉजिटिव सोच रखने वाले व्यक्ति थे उन्होंने बहुत कुछ किया देश के लिए मैं केवल आज उनका महत्वपूर्ण योगदान है बल्कि देश की शान है वह उन्होंने बैलिस्टिक मिसाइल प्रणाली में पश्चिमी देशों को एकांतर को समाप्त भी किया था
शिक्षण संस्थान चेयरमैन हरिओम तायल ने विद्यार्थियों को डॉ. पिल्लई के जीवन की उपलब्धियां गिनवाते हुए बताया कि डॉ पिल्लई ने देश की सुरक्षा में उपयोगी अग्नि, पृथ्वी, नाग, त्रिशुल ओर आकाश मिसाइल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। साथ ही वे भारत की ओर से सर्वप्रथम स्थापित सेटेलाइट व्हीकल एसएलवी-3ए की टीम के सदस्य रह चुके है।
डॉ जहांगीर भाभा
भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक
उनका जीवन काल 19 अक्टूबर 1909 से 24 जनवरी 1966 तक रहा
भारत के एक प्रमुख वैज्ञानिक और स्वप्नदृष्टा थे जिन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी। उनके पास वैज्ञानिकों की कमी हो होने पर भी थोड़े से वैज्ञानिकों की सहायता से मार्च 1944में नाभिकीय उर्जा पर अनुसन्धान आरम्भ किया। उन्होंने नाभिकीय विज्ञान में तब कार्य आरम्भ किया जब अविछिन्न शृंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था जब भी अपना प्रोजेक्ट पूरा कर रहे थे तो तब उनको गलत बताया जा रहा कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है उन्हें 'आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम' भी कहा जाता ह
भाभा का जन्म मुम्बई के एक सभ्रांत पारसी परिवार में हुआ था
भारत को परमाणु शक्ति बनाने के मिशन में प्रथम पग के तौर पर उन्होंने 1945 में मूलभूत विज्ञान में उत्कृष्टता के केंद्र टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआइएफआर) की स्थापना की।
डा. भाभा एक कुशल वैज्ञानिक और प्रतिबद्ध इंजीनियर होने के साथ-साथ एक समर्पित वास्तुशिल्पी, सतर्क नियोजक, एवं निपुण कार्यकारी थे। वे ललित कला व संगीत के उत्कृष्ट प्रेमी तथा लोकोपकारी थे। 1947 में भारत सरकार द्वारा गठित परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए।
उन्हें जेनेवा में अनुष्ठित विश्व परमाणुविक वैज्ञानिकों के महासम्मेलन में उन्होंने सभापतित्व किया। भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के
उनका का २४ जनवरी सन १९६६ को एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया था।
होमी जहांगीर भाभा
भारतीय विज्ञान संस्थान
टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान
परमाणु ऊर्जा आयोग (भारत)मातृसंस्थाकैम्ब्रिज विश्वविद्यालयडॉक्टरेट सलाहकारपॉल डिराक
रॉल्फ एच फाउलरडॉक्टरेट छात्रबी भी श्रीकांतनप्रसिद्ध कार्यभाभा
शिक्षासंपादित करें
उन्होंने मुंबई से कैथड्रल और जॉन केनन स्कूल से पढ़ाई की। फिर एल्फिस्टन कॉलेज मुंबई और रोयाल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से बीएससी पास किया।
मुंबई से पढ़ाई पूरी करने के बाद भाभा वर्ष 1927 में इंग्लैंड के कैअस कॉलेज, कैंब्रिज इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गए।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में रहकर सन् 1930 में स्नातक उपाधि अर्जित की। सन् 1934में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। जर्मनी में उन्होंने कास्मिक किरणों पर अध्ययन और प्रयोग किए। हालांकि इंजीनियरिंग पढ़ने का निर्णय उनका नहीं था। यह परिवार की ख्वाहिश थी कि वे एक होनहार इंजीनियर बनें। होमी ने सबकी बातों का ध्यान रखते हुए, इंजीनियरिंग की पढ़ाई जरूर की, लेकिन अपने प्रिय विषय फिजिक्स से भी खुद को जोड़े रखा। न्यूक्लियर फिजिक्स के प्रति उनका लगाव जुनूनी स्तर तक था। उन्होंने कैंब्रिज से ही पिता को पत्र लिख कर अपने इरादे बता दिए थे कि फिजिक्स ही उनका अंतिम लक्ष्य है।
उनकी उपलब्धियां
जेनेवा में 'परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण उपयोग' पर अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ भाभा (२० अगस्त १९५५)
होमी जहांगीर देश आजादी के टाइम वापस अपने देश में आ गए थे उनकी अपील का असर हुआ और कुछ वैज्ञानिक भारत लौटे भी। इन्हीं में एक थे मैनचेस्टर की इंपीरियल कैमिकल कंपनी में काम करने वाले होमी नौशेरवांजी सेठना। अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाले सेठना में भाभा को काफी संभावनाएं दिखाई दीं। ये दोनों वैज्ञानिक भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने के अपने कार्यक्रम में जुट गए। यह कार्यक्रम मूल रूप से डॉ॰ भाभा की ही देन था, लेकिन यह सेठना ही थे, जिनकी वजह से डॉ॰ भाभा के निधन के बावजूद न तो यह कार्यक्रम रुका और न ही इसमें कोई बाधा आई।
डॉ़ होमी भाभा ने डॉ़ सेठना को भारत लौटने के बाद बहुत सोच-समझ कर केरल के अलवाए स्थित इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड का प्रमुख बनाया था,
जहां उन्हाने मोनोज़ाइट रेत से दुर्लभ नाभिकीय पदार्थो के अंश निकाले। उस दौरान वे कनाडा-भारत रिएक्टर (सायरस) के प्रॉजेक्ट मैनेजर भी रहे।
इसके बाद डॉ़ सेठना ने 1959 में ट्रांबे स्थित परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान में प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी पद का कार्यभार संभाला। यह प्रतिष्ठान आगे चल कर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र बना। वहां उन्हाने नाभिकीय ग्रेड का यूरेनियम तैयार करने के लिए थोरियम संयंत्र का निर्माण कराया। उनके अथक प्रयास और कुशल नेतृत्व से 1959 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में प्लूटोनियम पृथक करने के प्रथम संयंत्र का निर्माण संभव हो सका।
इसके डिजाइन और निर्माण का पूरा काम भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने ही किया। उल्लेखनीय है कि आगे चल कर इसी संयंत्र में पृथक किए गए प्लूटोनियम से वह परमाणु युक्ति तैयार की गई जिसके विस्फोट से 18 मई 1974 को पोखरण में ‘बुद्घ मुस्कराए’। डॉ़ सेठना के मार्गदर्शन में ही 1967 में जादूगुड़ा (झारखंड) से यूरेनियम हासिल करने का संयंत्र लगा।
डॉ़ सेठना ने तारापुर के परमाणु रिऐक्टरों के लिए यूरेनियम ईंधन के विकल्प के रूप में मिश्र-ऑक्साइड ईंधन का भी विकास किया। पोखरण में परमाणु विस्फोट के बाद अमेरिका ने यूरेनियम की आपूर्ति पर रोक लगा दी थी, हालांकि ये रिऐक्टर अमेरिका निर्मित ही थे।
वह तो भला हो फ्रांस का कि उसने आड़े समय पर यूरेनियम देकर हमारी मदद कर दी अन्यथा डॉ़ सेठना तो मिश्र-ऑक्साइड से तारापुर के परमाणु रिऐक्टर को चलाने की तैयारी कर चुके थे। डॉ़ सेठना स्वावलंबन में विश्वास रखते थे वैज्ञानिक काम में उन्हें राजनैतिक दखल कतई पसंद नहीं था
वे परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के प्रबल हिमायती थे।
भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर यशपाल
जनमानस में विज्ञान को लोकप्रिय बनाना
जन्म26 नवम्बर 1926
पंजाब प्रांत (ब्रिटिश भारत)मृत्यू24 जुलाई 2017 (उम्र 90)
नोएडा, उत्तरप्रदेश , भारतनिवासभारतनागरिकता
भारतीयक्षेत्रभौतिकीसंस्थाएँभारतप्रसिद्ध कार्यटीवी कार्यक्रम प्रस्तोता,
यूजीसी के अध्यक्षपुरस्कारपद्म विभूषण
उनका जन्म 26 नवंबर, 1926 को झांग (पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक शहर) में हुआ था।
उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में स्नातकोत्तरतथा में मैसाचुसैट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी से भौतिकी में ही पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी।
यशपाल जी ने अपनी कैरियर की शुरुआत मुंबई से की थी मुंबई में स्थित टाटा अनुसंधान संस्थान से शुरू किया था 1978 में केंद्र सरकार द्वारा अहमदाबाद में स्थित अंतरिक्ष प्रयोग केंद्र के निदेशक नियुक्त हुए यह विज्ञान और टेक्नोलॉजी विभाग के सचिव भी रह चुके हैं
प्रोफेसर यशपाल को विश्वविद्यालय के अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी चुना गया और 2007 मैं तक जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में भी चुना गया
प्रोफ़ेसर यशपाल को भारतीय सरकार द्वारा बहुत से पदों से विभूषित किया गया जिनमें पहला है विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण दूसरा 2013 में इस क्षेत्र में पद्म भूषण से दुबारा सम्मानित किया गया और इन्हें लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार एवं कलिंग द्वारा भी पुरस्कृत किया गया था
अहमदाबाद अंतरिक्ष अनुप्रयोग संस्थान से पहले निदेशक व यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष वैज्ञानिक जसपाल ने लोगों की विज्ञान में रुचि पैदा कि उन्हें भौतिक विज्ञान में कॉस्मेटिक रेंज तथा उच्च भौतिक और अभौतिक के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बनाई
↑ अन्तरिक्ष उपयोग केंद्र में प्रो यशपाल की प्रोफाइल↑ प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर यशपाल का 90 बरस की उम्र में निधन(एनडीटीवी इंडिया) 25 जुलाई, 2017
6सुभाष मुखोपाध्याय
भारतीय में आईवीएफ के जनक
भारत मुखोपाध्याय का जन्म 16 जनवरी 1931 को हुआ वास मुखोपाध्याय भारत की पहली विश्व में दूसरी आईवीएफ बच्चों को जन्म देने बालों में गिने जाते हैं 3 अक्टूबर 1978 को उन्होंने इन विट्रो का निषेचन किया था इसके कारण शिशु दुर्गा का जन्म हुआ था लेकिन इसकी मान्यता दुर्भाग्य से 1986 में उनकी मौत के बाद में लिख बाद में उनके जीवन पर एक डॉक्टर की मौत नामक फिल्म भी बनी
का जन्म कोलकाता में हुआ था
स्पोटिंग चर्च कॉलेज में अपनी शिक्षा पूरी की
भारत में पहली ट्यूब के द्वारा शिशु पैदा करना यह मुखोपाध्याय को श्रेय जाता है
मुखोपाध्याय से पहले 3 महीने पहले ब्रिटेन में ट्यूब से बच्चा पैदा किया गया था वह दुनिया का सबसे पहला बच्चा था उसके बाद में भारत में यह परीक्षण हुआ बट लोग मानने को तैयार नहीं थे 8 साल बाद इसको मानने को तैयार हुए तब तक उनकी मौत हो चुकी थी
डॉक्टर कोटी हरिनारायण
इनका जन्म 1945 को हुआ था
कॉन्बैट एयरक्राफ्ट के निर्माता
डॉक्टर यू आर राव
अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत की धाक जमाई भारत में स्वदेशी
इनका जन्म 10 मार्च 1932 में वह और मृत्यु 24 जुलाई 2017 को
अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत की धाक जमाई भारत में स्वदेशी डिजाइन के आधार पर तैयार उपग्रह आर्यभट्ट को 1975 में लॉन्च करने के पीछे इन्ही कहा था इस सफलता के बाद भारत पहली बार अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में दुनिया के नक्शे पर आया वह पहले भारतीय थे जिन्होंने वॉशिंगटन हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया
तिरुवनंतपुरम में भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) के कुलपति के पद पर लास्ट टाइम तक थे
भारत सरकार ने यू आर राव को 1976 में 'पद्म
भूषण' से भी सम्मानित किया था
इनका जन्मआदमपुर मैं हुआ
1984 से 1994 के बीच उन्होंने दस साल के लिए इसरो के अध्यक्ष भी रहे
यह इन इन पदों पर रहे
पोस्ट डॉक्टरल फेलो एमआईटी, संयुक्त राज्य अमरीका (1961-1963)
सहायक प्रोफेसर, एसडब्ल्यू एडवान्स रिसर्च, डाल्लास, टेक्सास(1963 – 1966)
एसोसिएट प्रोफेसर, फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, अहमदाबाद(1966 – 1969)
फेसर, फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, अहमदाबाद (1969 – 1972)
परियोजना निदेशक, भारतीय वैज्ञानिक उपग्रह परियोजना, बैंगलोर (1972 – 1975)
निदेशक, इसरो उपग्रह केंद्र, बेंगलूरु(1975 – 1984)
अध्यक्ष, अंतरिक्ष आयोग/ सचिव, अंतरिक्ष विभाग, भारत सरकार और
अध्यक्ष, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), बैंगलोर(1984 – 1994)
डॉ. विक्रम साराभाई के प्रतिष्ठित प्रोफेसर अंतरिक्ष विभाग(1994 – 1999)
अध्यक्ष, संयुक्त राष्ट्र - बाह्य अंतरिक्ष शांतिपूर्ण उपयोग समिति (यूएन-सीओपीयूओएस)(1997 – 2000)
सदस्य, प्रसार भारती बोर्ड(1997 – 2001)
सदस्य, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड(1998 – 2001)
सदस्य, अंतरिक्ष आयोग, भारत सरकार(1981 – 2001)
अध्यक्ष, प्रसार भारती बोर्ड(2001 – 2002)
अध्यक्ष, अंतरिक्ष भौतिकी केंद्र, कोलकाता(2007)
अध्यक्ष, भारतीय संप्रभुता संस्थान, उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान, (2007 – till date)
अध्यक्ष, कर्नाटक साइंस एंड प्रौद्योगिकी अकेडमी(2005 – till date)
सह-अध्यक्ष, गवर्निंग काउंसिल, नेशनल सेंटर फॉर अंटार्कटिक एंड ओशन रिसर्च, गोवा (1997 - आज तक)
अध्यक्ष, अंतरिक्ष विज्ञान के सलाहकार समिति, इसरो(2005 – till date)
चांसलर, बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ2006 – 2011)
सदस्य, निदेशक केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, भारतीय रिजर्व बैंक(2006 – 2011)
अपर निदेशक, भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्रैइवेट लिमिटेड, बैंगलोर(2007 – till date)
निदेशक, बैंक नोट पेपर मिल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड लिमिटेड, बैंगलोर (2010 - अब तक)
अध्यक्ष पीआरएल परिषद, इसरो-अं.वि.(1988 - आज तक)
अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्षेत्र में व्यावसायिक पद
उपाध्यक्ष, इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन (आईएएफ) (1986-1992)
अध्यक्ष, आईएएफ विकासशील राष्ट्र के साथ(CLODIN) सम्पर्क समिति(1988-2006)
अध्यक्ष, संयुक्त राष्ट्र-COPUOS की (संयुक्त राष्ट्र - बाह्य अंतरिक्ष उपयोग शांतिपूर्ण समिति)1997-2000
अध्यक्ष, यूनिस्पेस-।।।सम्मेलन 1999
यह है इनको राष्ट्रीय पुरस्कार मिले
राष्ट्रीय
2017 भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म विभूषण
1976 भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण
1975 कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार, बेंगलूरु
1975 हरिओम विक्रम साराभाई पुरस्कार
1975 सीएसआईआर का अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार
1980राष्ट्रीय डिजाइन पुरस्कार
1980 वासविक रिसर्च इलेक्ट्रॉनिक विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी1
1983 कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार, बेंगलूरु
1987 पीसी महालनोबिस मेडल
1993 ऊर्जा और एयरो अंतरिक्ष में ओम प्रकाश भसीन पुरस्कार
1993 मेघनाद साहा मेडल
1994 पीसी चंद्र पुरस्कार
1994 इलिनीका द्वारा वर्ष के इलेक्ट्रानिकी मैन पुरस्कार
1995 जहीर हुसैन मेमोरियल पुरस्कार
1995 आर्यभट्ट पुरस्कार, बेंगलूरु
1995 एमपी सरकार का जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार
1996 एसके मित्रा जन्म शताब्दी गोल्ड मेडल
1997 यदुवीर फाउंडेशन पुरस्कार
1997 रवीन्द्रनाथ टैगोर पुरस्कार- विश्व भारती विश्वविद्यालय
1999 विज्ञान और प्रौक्योगिकी , नई दिल्ली से गुजर मल मोदी पुरस्कार
2001 कन्नड़ विश्वविद्यालय, हंपी से नाडोजा पुरस्कार,
2001 लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार आईएनएई, नई दिल्ली
2002 सर एम विश्वेश्वरैया स्मारक पुरस्कार
2003 प्रेस ब्यूरो िंडिया पुरस्कार
2005 भारत रत्न राजीव गांधी उत्कृष्ठ नेतृत्व पुरस्कार
2007 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार
2007 कर्नाटक साइंस एंड प्रौद्योगिकी अकादमी का उक्कृश्ठ वैज्ञानिक स्वर्ण पदक
2008 आईएससीए से जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार से पदक 2007-2008
2008 A.V. राम राव प्रौद्योगिकी पुरस्कार - 2007, एवीआरए लेबोरेटरीज प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद
2009 हरि ओम आश्रम प्रेरित वरिष्ठ वैज्ञानिक पुरस्कार - पीआरएल, अहमदाबाद
2010 भारतीय विज्ञान कांग्रेस सभा – जनरल प्रेसिंडेट स्वर्ण पदक
2011शिवानंद प्रख्यात नागरिक पुरस्कार, सनातन धर्म चैरिटेबल ट्रस्ट, विशाखापत्तनम
अंतर्राष्ट्रीय
1973 नासा यूएसए का गुरुप ऑफ अचिवमेंट पुरस्कार
1975 विज्ञान अकादमी यूएसएसआर द्वारा मेडल
1991 यूरी गागरिन पदक यूएसएसआर
1992 एलन डी एमिल अवार्ड (इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन)
1994 फ्रैंक जम्मू मलिना अवार्ड (इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन)
1996 विक्रम साराभाई कॉसपार पदक
1997 'सतत विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी' पर पुस्तक के लिए इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल अकादमी द्वारा उत्कृष्ठ किताब
2000 इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ फोटो ग्रामिटी एंड रिमोट सेंसिंग में एडवर्ड डोलेज़ल पुरस्कार (ISPRS)
2004 अंतरिक्ष में शीर्ष 10 अंतरराष्ट्रीय हस्तियों में से एक के रूप में स्पेस न्यूज मैगझिन द्वारा नामित
2005 थिओडोर वॉन कर्मन पुरस्कार इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन (आईएए)
2013 वाशिंगटन में सेटेलाइट हाल ऑफ फेम द्वारा सोसाइटी ऑफ सेटेलाइट प्रोफेशनल इंटरनैशनल (एसएसपीआई)
2016 इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन के द्वारा हॉल ऑफ फेम पुरस्कार
इनको इतनी डिग्रियां थी डाक्टरेट की
डी लिट.(हानर्स. काउसा):
2001 कन्नड़ विश्वविद्यालय, हंपी
डी.एससी. (हानर्स. काउसा)::
1976 मैसूर विश्वविद्यालय,, मैसूर
1976 राहुरी विश्वविद्यालय,, राहुरी
1981 कलकत्ता विश्वविद्यालय,कोलकाता
1984 मंगलौर विश्वविद्यालय, मंगलोर
1992 युनिरसिटी ऑफ बोलोग्ना, इटली
1992 बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस
1992 उदयपुर विश्वविद्यालय , उदयपुर
1993 एसवी विश्वविद्यालय, तिरुपति
1994 जेएन विश्वविद्यालय, हैदराबाद
1994 अन्ना विश्वविद्यालय, मद्रास
1994 रुड़की विश्वविद्यालय , रूड़की
1995 पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला
1997 श्री शाहूजी महाराज यूनिवर्सिटी, कानपुर
1999 इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स, धनबाद
2002 चौ.चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ
2005 यूपी टेक्निकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ
2006 विश्वेश्वरय्या तकनीकी विश्वविद्यालय, बेलगाम
2007 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली
2010 डॉ. डी.वाय. पाटिल विद्यापीठ, पुने
2012 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, अगरताला
2013 बंगलौर विश्वविद्यालय, बेंगलूरु
2013 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भुवनेश्वर
फेलोशीप
भारतीय विज्ञान अकादमी के फेलो
भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के फेलो
विज्ञान के थर्ड वर्ल्ड अकादमी के ट्रीस्टे के फेलो
एस्ट्रोनॉटिक्स इंटरनेशनल सोसायटी
यू आर राव कस्तूरीरंगन के.आर. श्रीधर मूर्ति और सुरेन्द्र पाल (संपादक): "प्रेस्पेक्टिवज इन कम्युनिकेशन",वल्ड साइंटिफिक, (1987)।
यू आर राव, एम जी चंद्रशेखर, और वी जयरामन: "स्पेस एंड एजेंडा 21 - कैरिंग फॉर प्लैनेट अर्थ", प्रिज्म बुक प्राइवेट लिमिटेड, बैंगलोर, (1995)।
यू आर राव: "स्पेस टेक्नालॉजी फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट", टाटा मैकग्रा-हिल पब., नई दिल्ली (1996)
यू आर राव: "इंडियाज राइज एज ए स्पेस पावर", फाउंडेशन बुक्स, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, (2014)।
वर्ड एकादमी ऑफ आर्ट सव साइन्स, यूएसए के फेलो
भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरी एकादमी के फोलो
एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के फेलो
एरियोनोटिकल सोसाइटी के मानद फेलो
एस्ट्रोनॉटिक्स एंड टेलिकम्युनिकेशन इंजीनियरी संस्थान के उत्कृष्ठ फेलो
भारतीय राष्ट्रीय कार्टोग्राफिक एसोसिएशन के मानट फेलो
भारत के प्रसारण और इंजीनियरिंग सोसायटी के फेलो
एयरो मेडिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के मानद फेलो
फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी, अहमदाबाद के उकृष्ठ फेलो
इनके द्वारा लिखी गई किताबें
यू आर राव कस्तूरीरंगन के.आर. श्रीधर मूर्ति और सुरेन्द्र पाल (संपादक): "प्रेस्पेक्टिवज इन कम्युनिकेशन",वल्ड साइंटिफिक, (1987)।
यू आर राव, एम जी चंद्रशेखर, और वी जयरामन: "स्पेस एंड एजेंडा 21 - कैरिंग फॉर प्लैनेट अर्थ", प्रिज्म बुक प्राइवेट लिमिटेड, बैंगलोर, (1995)।
यू आर राव: "स्पेस टेक्नालॉजी फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट", टाटा मैकग्रा-हिल पब., नई दिल्ली (1996)
यू आर राव: "इंडियाज राइज एज ए स्पेस पावर", फाउंडेशन बुक्स, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, (2014)।
पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम
अबुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम अथवा ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम (अंग्रेज़ी: A P J Abdul Kalaam), (15 अक्टूबर 1931 - 27 जुलाई 2015) जिन्हें मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति के नाम से जाना जाता है
, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे।
वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता (इंजीनियर) के रूप में विख्यात थे।
ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम
ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम
भारत के 11वें राष्ट्रपति
इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई।
इन्होंने भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त
कार्यालय छोड़ने के बाद, कलाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग, भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद, भारतीय प्रबंधन संस्थान इंदौर व भारतीय विज्ञान संस्थान,बैंगलोर के मानद फैलो, व एक विजिटिंग प्रोफेसर बन गए।
भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुवनंतपुरम के कुलाधिपति, अन्ना विश्वविद्यालय में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और भारत भर में कई अन्य शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों में सहायक बन गए। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और अन्ना विश्वविद्यालय में सूचना प्रौद्योगिकी, और अंतरराष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान हैदराबाद में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पढ़ाया।
निधनसंपादित करें
27 जुलाई 2015 की शाम अब्दुल कलाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग में 'रहने योग्य ग्रह' पर एक व्याख्यान दे रहे थे जब उन्हें जोरदार कार्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) हुआ और ये बेहोश हो कर गिर पड़े।
।लगभग 6:30 बजे गंभीर हालत में इन्हें बेथानी अस्पताल में आईसीयू में ले जाया गया और दो घंटे के बाद इनकी मृत्यु की पुष्टि कर दी गई।
बाद में षडमुखनाथन ने बताया कि कलाम को बचाने की चिकित्सा दल की कोशिशों के बाद भी शाम 7:45 पर उनका निधन हो गया।
अंतिम संकट
यहाँ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सहित अनेक गणमान्य लोगों ने इन्हें श्रद्धांजलि दी। भारत सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति के निधन के मौके पर उनके सम्मान के रूप में सात दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की।
30 जुलाई 2015 को पूर्व राष्ट्रपति को पूरे सम्मान के साथ रामेश्वरम के पी करूम्बु ग्राउंड में दफ़ना दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी, तमिलनाडु के राज्यपाल और कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों सहित 3,50,000 से अधिक लोगों ने अंतिम संस्कार में भाग लिया।
अब्दुल कलाम के निधन पर काला रिबन दिखाता गूगल का मुख्यपृष्ठ
दलाई लामा ने अपनी संवेदना और प्रार्थना व्यक्त की और कलाम की मौत को "एक अपूरणीय क्षति" बुला, अपना दुख व्यक्त किया।
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दक्षिण एशियाई नेताओं ने अपनी संवेदना व्यक्त की और दिवंगत राजनेता की सराहना की। भूटान सरकार ने कलाम की मौत के शोक के लिए देश के झंडे को आधी ऊंचाई पर फहराने के लिए आदेश दिया,
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने उनकी व्याख्या करते हुए कहा, "एक महान राजनेता प्रशंसित वैज्ञानिक और दक्षिण एशिया के युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत के संयोग" उन्होंने कलाम की मृत्यु को "भारत के लिए अपूरणीय क्षति से भी परे बताया।"
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी, ने कलाम को, "लाखों लोगों के लिए एक प्रेरणादायक शख्सियत बताया" ये नोट करते हुए "हमे अपने जीवन से बहुत कुछ सीखना है।" नेपाली प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने भारत के लिए कलाम के वैज्ञानिक योगदानों को याद किया।