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केरल को ‘निफा वायरस’ की पुष्टि के बाद हाई अलर्ट पर रखा गया है केरल के तटीय कोझिकोड क्षेत्र में वायरल बुखार से मरने वाले दो व्यक्तियों के रक्त और शरीर के तरल नमूने में इसका निशान पाया गया। केरल सरकार द्वारा कोझीकोड में होने वाली मौतों के लिये ज़िम्मेदार कारक के रूप में ‘निफा वायरस’ की पुष्टि की गई है। पुणे विरोलॉजी इंस्टीट्यूट द्वारा निफा वायरस की पुष्टि की गई है। इस मामले में अधिक सटीक एवं प्रभावी जाँच-पड़ताल के लिये इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा एक समिति का गठन किया गया है।
पाया गया कि यह रहस्यमय मौतें ‘निफा वायरस’ (NiV) के अटैक के कारण हो रही है, जिसकी वजह से अब तक कई लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे ने तीन नमूनों में निफा वायरस की उपस्थिति की पुष्टि की है। निफा वायरस का
इन दिनों निफा नाम के खतरनाक वायरस का आतंक है। ये वहां लगातार फैल रहा है। इससे कई मौतों की खबर है। इस वायर से फैलने वाली बीमारी अलग अलग समय पर दुनिया में तबाही मचा चुकी है। ये वायरस संक्रामक तौर पर महामारी का रूप ले सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, निफा वायरस (NiV) एक नई उभरती बीमारी है जो जानवरों और मनुष्यों दोनों में गंभीर बीमारी का कारण बनता है। निफा वायरस को ‘निफा वायरस एन्सेफलाइटिस’ भी कहा जाता है। निफा वायरस (NiV) पहली बार 1998 में मलेशिया और सिंगापुर में पहचाना गया, जब यह सूअरों और मनुष्यों में बीमारी का काण बना।निपा वायरस (एनआईवी) संक्रमण ज़ूनोटिक बीमारी है यह वायरस इंसानों के साथ-साथ जानवरों को भी प्रभावित करता है। यह वायरस फ्रूट बैट्स के माध्यम से इंसानों और जानवरों पर आक्रमण करता है।
एक ऐसा इंफेक्शन है जो फ्रूट बैट्स के जरिए मनष्यों के अलावा जानवरों को भी अपनी चपेट में ले लेता है। सबसे पहले साल 1998 में पहली बार मलेशिया के कांपुंग सुंगई निफा में इसके मामले सामने आए थे। यह इंफेक्शन सबसे पहले सुअरों में देखा गया लेकिन बाद में यह वायरस इंसानों तक भी पहुंच गया। साल 2004 में बांग्लादेश में इंसानों पर Nipah Virus ने हमला करना शुरू किया।
निफा वायरस
WHO के अनुसार, निफा वायरस एक नई उभरती हुई बीमारी है, जो जानवरों और मनुष्यों दोनों में गंभीर बीमारी की वजह बनता है। इसे 'निफा वायरस एन्सेफलाइटिस' भी कहा जाता है। के बीच संचरण fomites के कारण हो सकता है - या कपड़े, उपकरण, जूते, वाहनों पर वायरस ले जा रहा है।
लेकिन अब, वायरस कुत्तों, बिल्लियों, बकरियों, घोड़ों और भेड़ सहित घरेलू जानवरों की कई प्रजातियों में पाया गया है।
ये पहले पालतू सुअरों के जरिए फैला और फिर कई पालतू जानवरों मसलन कुत्तों, बिल्लियों, बकरी, घोड़े और भेड़ में दिखने लगा। ये मनुष्यों पर तेजी से असर डालता है। निफा वायरस को ये नाम सबसे पहले मलेशिया के एक गांव में फैलने के बाद दिया गया।निफा वायरस 'टेरोपस जीनस' नाम के एक खास नस्ल से फैलता है।
ये बीमारी चमगादड़ों से फैलती है। ये वायरस चमगादड़ों के मूत्र में मौजूद रहते हैं। इसी तरह उसकी लार और शरीर से निकलने वाले द्रव में भी। पहले ये माना गया कि ये सुअरों से जरिए फैलता है लेकिन बाद में पता चला है कि ये वो सुअर थे जो चमगादड़ों से संपर्क में आए। ये वो चमगादड़ थे जो वनों के कटने और अन्य वजहों से अपने रहने की जगह से उजड़ गए थे। बाद में जब ये बीमारी वर्ष 2004 में बांग्लादेश में फैली तो पता लगा कि ये बीमारियां उन लोगों में आई, जिन्होंने वो कच्चा ताड़ का रस पिया, जहां चमगादड़ों का डेरा था
निफा वायरस, मनुष्यों और जानवरों में फैलने वाला एक गंभीर इंफेक्शन है। यह वायरस एन्सेफलाइटिस का कारण बनता है। निफा वायरस, हेंड्रा वायरस से संबंधित है, जो घोड़ों और मनुष्यों के वायरल सांस संक्रमण से संबन्धित होता है। यह इंफेक्शन फ्रूट बैट्स के जरिए लोगों में फैलता है। खजूर की खेती करने वाले लोग इस इंफेक्शन की चपेट में जल्दी आते हैं। 2004 में इस वायरस की वजह से बांग्लादेश में काफी लोग प्रभावित हुए थे। निफा वायरस (NiV) के
ये भी मानना सही की माने तो यह Nipah Virus खजूर की खेती करने वाले लोग फ्रूट बैट की चपेट में आ जाते हैं जिससे एक शख्स से दूसरे शख्स में यह वायरस फैलता है। निफा वायरस के शुरुआती दौर में पीड़ित शख्स को सांस लेने की दिक्कत के साथ इंसेफ्लाइटिस जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इस बीमारी से पीड़ित शख्स को इंटेंसिव सपोर्ट केयर के जरिए देखभाल की जाती है।
असल में, डॉक्टरों का कहना है कि निपा में वायरस का वायुमंडल संचरण संभव नहीं है, इसलिए जो लोग संक्रमित व्यक्तियों के साथ शारीरिक रूप से संपर्क में आते हैं वे दूषित हो जाएंगे।
बीमारी के लक्षण
एनआईवी संक्रमण तीव्र श्वसन सिंड्रोम, सांस लेने में परेशानी, मस्तिष्क की सूजन, बुखार, सिरदर्द, घबराहट तथा भ्रम का कारण बन सकता है। रोगी 48 घंटे के भीतर कोमा में जा सकता है। इसके साथ संक्रमित मरीजों की मृत्यु दर 70% है। यह घरेलू जानवरों से बीमारियों को उत्पन्न करने में सक्षम ह
जिस किसी को निफा वायरस इन्फैक्ट करते हैं, उसे बुखार के साथ सिर दर्द, थकान, भटकाव, मेंटल कंफ्यूजन जैसी स्थितियां बनती हैं। निफा वायरस के रोगी 24-48 घंटों के भीतर कोमा में जा सकते हैं। फिर मौत भी हो सकती है। इससे ब्रेन में सूजन आ जाती है। मलेशिया में जब ये बीमारी फैली, तो इसका इलाज करने वाले 50 फीसदी लोग मौत के शिकार बन गए इससे पीड़ित लोगों के ब्रेन में सूजन आ जाती है। बुखार, सिरदर्द, उल्टी और चक्कर आना भी इस इंफेक्शन के लक्षण हैं। इस वायरस से पीड़ित व्यक्ति कोमा में जा सकता है और उसकी मौत भी हो सकती है। यह इंफेक्शन इतना खतरवाक है कि इससे पीड़ित व्यक्ति 24 से 28 घंटों में कोमा में पहुंच सकता है।
अत्यधिक तेज़ी से फैल रहा है यह मनुष्य में भी अत्यधिक तेजी से फैल रहा है यह मनुष्य में सबसे पहले उसकी ब्रोन मैरो को प्रभावित करता है बाद में उसके सर में दर्द, बुखार,सिरदर्द आदि होने लगते है इस वायरस से लोगो को चक्कर भी आने लगता है इस वायरस से लोग कोमा में भी चले जाते है या उनकी मौत भी हो सकती है Nipa virus in dangerous केरल में इस समय निपा वायरस तेज़ी से फैल रही है इस रोग से बचने के लिए कोई उपाय नही है
बुखार, सिरदर्द, चक्कर, मानसिक भ्रम, कोमा और आखिर में मौत होना, इसके लक्षणों में शामिल हैं।
निफा वायरस का इलाज?
मनुष्यों में, निफा वायरस ठीक करने का एक मात्र तरीका है सही देखभाल। रिबावायरिन नामक दवाई वायरस के खिलाफ प्रभावी साबित हुई है। हालांकि, रिबावायरिन की नैदानिक प्रभावकारिता मानव परीक्षणों में आज तक अनिश्चित है। दुर्भाग्यवश, मनुष्यों या जानवरों के लिए कोई विशिष्ट एनआईवी उपचार या टीका नहीं है।
निपा वायरस का पता कब और कैसे चला
इस रोग का पता सबसे पहले 20 साल पहले 1998 में काग्पुग सुंगेईं निपा मे मिली थी इसे मिडिकल टर्न में NIV कहा जाता है कुछ साल पहले बाग्लादेश में भी इसके मरीज पाए गए थे काश बात यह है कि मलेशिया में भी यह वायरस सुअरों में पाया गया था धीरे-धीरे यह वायरस मनुष्य में भी पाया जाने लगा
इस वायरस से कैसे बच सकते है
इस वायरस से हम तभी बच सकते है
जब हम सूअर और चमगादड़ों से दूर रहे हैं
कभी भी जमीन में गिरे हुए फलों को उठाकर ना जाए
ं शरीर में दर्द यह सिरदर्द वह तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं और उनकी सलाह ले
भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में ये बीमारी चमगादड़ों के जरिए सीधे मनुष्य से मनुष्य में ट्रांसमीट होती है। इसलिए जिन लोगों को ये बीमारी होती है, उनसे संपर्क में आने के लिए जरूरी सावधानियां बरतनी चाहिए। कुछ केस में रोगी को सांस संबंधित समस्या का भी सामना करना पड़ सकता ह
Virus से बचाव : इस वायरस से बचाव के लिए रिबावायरिन नामक दवाई का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाला इंफेक्शन है इसलिए इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति से दूरी बनानी चाहिए या अधिक सावधानी बरतने से ही इस खतरनाक वायरस से बचा जा सकता है।
यह वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलता है। इसे रोकने के लिये संक्रमित रोगी से दूरी बनाए रखें। स्वास्थ्य कर्मियों को अस्पताल में निफा वायरस से बचने के लिए संक्रमित मरीजों की देखभाल करते समय या प्रयोगशाला के नमूनों को संभालने और जमा करते समय उचित सावधानी बरतनी चाहिये।
इस वायरस का प्रसार होता है।
खजूर की खेती करने वाले लोग फ्रूट बैट्स की चपेट में आ जाते हैं। इसके बाद एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में
इस वायरस की चपेट में आने के बाद व्यक्ति को साँस लेने में परेशानी होती है, जिसके बाद वह इंसेफ्लाइटिस से ग्रसित
इस वायरस का होने और प्रसार होने का एक और भी कारण है अभी केरल में जांच टीम ने जब केरल के कई कुआं को जाकर देखा तो उनमें 1000 से 5000 के बीच में चमगादड़ मिली क्या होता है जब यह चमगादड़ वन काटने पर अपना आवास खो देती है तो यह कुआं को अपना आवास स्थान बना लेती है अभी जांच टीम ने केरल के कई कुआं के नमूने पानी के नमूने लिए हैं जिनमें यह दावा किया है कि इस वजह से भी निभा वायरस फैल रहा है
इंसानों के रूप में, निपा वायरस के लिए प्राथमिक उपचार गहन सहायक देखभाल है। दवा रिबाविरिन विट्रो में वायरस के खिलाफ प्रभावी साबित हुई है।
रिबावायरिन की नैदानिक प्रभावकारिता मानव परीक्षणों में आज तक अनिश्चित है।
इसका कोई पुख्ता इलाज नहीं है, अभी तक इसकी कोई वैक्सीन नहीं बनी है।
मुझे बतलाए की यह मनुष्य के शरीर से कैसे क्रिया करता है।
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